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“राजीव गांधी की अधूरी कहानी: सपना, संघर्ष और शहादत”

By mangat ram

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राजीव गांधी
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राजीव गांधी: नेता नहीं, एक भावनात्मक इंसान की कहानी

“मैं कभी नेता बनना ही नहीं चाहता था…”

राजीव गांधी ने एक बार कहा था:

“मैं तो बस एक शांत ज़िंदगी चाहता था — किताबें, प्लेन और मेरा परिवार। राजनीति मेरे लिए मजबूरी थी, पसंद नहीं।”

उनके शब्दों से स्पष्ट होता है कि वे दबाव में राजनीति में आए, केवल इसलिए ताकि मां इंदिरा गांधी को सहारा मिल सके।

प्रारंभिक जीवन: विमानन से राजनीति तक

  • राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। उन्होंने डून स्कूल (देहरादून) और इसके बाद इंग्लैंड के इम्पीरियल कॉलेज, लंदन और कैम्ब्रिज में शिक्षा प्राप्त की शिक्षा पूरी न कर पाकर उन्होंने India Airlines में कमर्शियल पायलट की नौकरी शुरू की, और वे राजनीति से बिल्कुल दूर थे ।

  • उनकी रुचियाँ संगीत, फोटोग्राफी और रेडियो में थीं—राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी ।

बदलते हालात: संजय गांधी की मृत्यु और दबाव

  • उनके छोटे भाई संजय गांधी की जून 1980 में दुर्घटना में अचानक मृत्यु हो गई

  • इससे उनका निजी जीवन बदल गया—और कांग्रेस पार्टी की कद्दावर शख्सियतों ने उन्हें राजनीति में आने के लिए दबाव बनाया

  • एक संत (स्वामी स्वरोपनंद जी) ने भी उन्हें देश सेवा के लिए राजनीति में आने की सलाह दी, और दिल्ली के कई कांग्रेस नेता ने इंदिरा गांधी से आग्रह किया कि राजीव को पार्टी में शामिल करें ।

  • राजीव ने कहा, “अगर मेरी मां को इससे मदद मिलेगी, तो मैं राजनीति में उतरूंगा।”

राजनैतिक पदार्पण: चुनाव और भूमिका

  • 16 फरवरी 1981 को उन्होंने नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय किसान रैली को संबोधित कर अपनी पहली सार्वजनिक राजनीतिक उपस्थिति दर्ज की

  • 4 मई 1981 को “अमेठी” सीट के लिए उनका नामांकन घोषित हुआ, और उन्होंने लोकसभा उप-चुनाव में 2.37 लाख की बड़ी जीत दर्ज की ।

  • इसके बाद 17 अगस्त 1981 को उन्होंने MP के रूप में शपथ ली ।


 बढ़ता दायित्व: पार्टी में भूमिका (1982–1984)

  • दिसंबर 1981 में उन्हें युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनने का ज़िम्मा मिला ।

  • 1982 एशियाई खेल के सफल आयोजन में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई—यहां उनकी organizational skills प्रदर्शित हुई ।

  • 3 फरवरी 1983 को उन्हें कांग्रेस के महासचिव (General Secretary, AICC) बनाया गया — एक छोटा-छोटा कदम, लेकिन यह मोर्चा पाने की दिशा में पहला बड़ा कदम था

अंतिम राजनीतिक छलांग और प्रधानमंत्री पद

  • 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के अगले ही दिन, राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ

  • उन्होंने तुरंत लोकसभा भंग कर दी, और दिसंबर 1984 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने 404–414 सीटें जीतकर भारी बहुमत प्राप्त किया ।

  • उस समय वह 40 वर्ष के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बन गए, और साथ ही IT और आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम

Rajiv Gandhi ji was a fervent supporter of women’s empowerment, actively pushing for their inclusion in local government, advocating for reservation for women, and encouraging the creation of women’s self-help organisations. pic.twitter.com/4WHbXfoT7d

— Congress (@INCIndia) May 21, 2023

राजीव गांधी का कार्यकाल (1984–1989): परिवर्तन, तकनीक और विवादों का युग

 युवा सोच, नया भारत

राजीव गांधी ने जब प्रधानमंत्री का पद संभाला, तब देश तीव्र अस्थिरता और ग़ुस्से के दौर से गुजर रहा था। उनकी छवि एक युवा, आधुनिक और सुलझे हुए नेता की थी — और उन्होंने भारत को एक तकनीकी रूप से सक्षम राष्ट्र बनाने का सपना देखा।

“India is an old country, but a young nation. And like the young everywhere, we are impatient.”
राजीव गांधी, 1985

1. सूचना प्रौद्योगिकी और संचार क्रांति (IT & Telecom Revolution)

  • उन्होंने देश में कंप्यूटर और IT सेक्टर के बीज बोए।

  • सैम पित्रोदा जैसे टेक्नोलॉजी विशेषज्ञों को बुलाकर, डिजिटल टेलीफोन एक्सचेंज, STD बूथ, और ई-गवर्नेंस की नींव रखी।

  • यह वह समय था जब भारत में पहली बार PC (पर्सनल कंप्यूटर) और डेटा एंट्री सिस्टम सरकारी विभागों में प्रयोग होने लगे।


 2. शिक्षा और पंचायती राज में सुधार

  • नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) लागू की गई — जिसका उद्देश्य था:

    • बच्चों को समान शिक्षा,

    • ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल सुविधा बढ़ाना,

    • महिला शिक्षा को बढ़ावा देना।

  • 73वां और 74वां संविधान संशोधन लाकर उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाया, जिससे गाँवों को विकास के लिए अधिकार मिले।


 3. आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत

  • उन्होंने लाइसेंस राज में ढील, उद्योगों को कंप्यूटराइजेशन, और नवाचार को बढ़ावा दिया।

  • Import duty में छूट और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की अवधारणा शुरू की गई।

  • हालांकि 1991 में इसका पूर्ण उदारीकरण हुआ, लेकिन नींव राजीव गांधी ने ही रखी थी


 4. विदेश नीति और शांति मिशन

  • उन्होंने श्रीलंका में शांति सेना (IPKF) भेजी, ताकि तमिल संघर्ष खत्म हो सके — हालांकि यह निर्णय बाद में विवादों में घिर गया

  • अमेरिका, रूस और यूरोपीय देशों से दोस्ती को प्राथमिकता दी और Non-Aligned Movement को और प्रासंगिक बनाया।


 5. विवाद और आलोचना

 बोफोर्स घोटाला (1987):

  • स्वीडिश तोप खरीदी में रिश्वत का आरोप लगा, जिससे उनकी छवि धूमिल हुई।

  • विपक्ष ने “राजीव गांधी चोर है” जैसे नारे चलाए और 1989 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई।

 शाह बानो केस और मुस्लिम विमेन बिल:

  • कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार) कानून पास किया — जिससे सैक्युलर छवि पर प्रश्न उठे।

राजीव गांधी की हत्या और विरासत: एक अधूरा सपना, जो भारत को दिशा दे गया

21 मई 1991 — वह भयावह रात

  • स्थान: श्रीपेरुंबदूर, तमिलनाडु

  • घटना: राजीव गांधी एक चुनावी सभा को संबोधित करने के लिए पहुंचे थे।

  • जैसे ही वे समर्थकों से मिल रहे थे, ध्यानदीप्ता नाम की एक आत्मघाती महिला हमलावर ने फूलों का हार पहनाने के बहाने उनके पास जाकर खुद को विस्फोट से उड़ा दिया।

यह भारत की राजनीति में पहली बार था जब किसी प्रमुख नेता की suicide bombing द्वारा हत्या हुई।

तस्वीरों का सबूत:

  • यह पूरी घटना एक कैमरे में रिकॉर्ड हुई थी — क्योंकि राजीव गांधी के साथ एक स्थानीय फोटोग्राफर हरिबाबू मौजूद था, जिसकी मौत भी उसी धमाके में हुई।


हत्या के पीछे कौन?

  • LTTE (Liberation Tigers of Tamil Eelam) — श्रीलंका का उग्रवादी तमिल संगठन — इस हमले के पीछे जिम्मेदार माना गया।

  • कारण:

    • भारत द्वारा श्रीलंका में शांति सेना (IPKF) भेजे जाने से LTTE नाराज़ था।

    • LTTE की प्रमुख शिकायत थी कि भारत ने तमिल विद्रोह को दबाने में श्रीलंका का साथ दिया।

 न्याय और सजा:

  • हत्या की जांच CBI और SIT ने की।

  • 26 लोगों को दोषी ठहराया गया, जिनमें से कुछ को फांसी और अन्य को आजीवन कारावास मिला।

  • 2018 में, तमिलनाडु सरकार ने कुछ दोषियों की रिहाई की सिफारिश की, जिसे लेकर विवाद भी हुआ।


राजीव गांधी की विरासत: क्या छोड़ा उन्होंने पीछे?

 1. तकनीकी भारत का सपना

  • कंप्यूटर, डिजिटल टेलीफोन, STD बूथ — जो आज आम बात है, वह राजीव गांधी की दूरदर्शिता से शुरू हुआ।

  • उन्होंने भारत को 21वीं सदी की ओर ले जाने की नींव रखी।

 2. शिक्षा और युवाओं का समर्थन

  • नई शिक्षा नीति (1986), राष्ट्रीय खुला विद्यालय (NIOS) और IGNOU जैसे संस्थानों का विकास।

  • युवाओं को प्रशासन और पंचायती राज में अधिकार देने की प्रक्रिया।

📜 3. राजनीतिक सभ्यता और संयम

  • उनकी भाषा, व्यवहार, और दृष्टिकोण में हमेशा सभ्यता और विज्ञानसम्मत सोच दिखाई देती थी।

  • वे कभी कटु भाषणों या व्यक्तिगत आरोपों में नहीं उलझे।

“व्यक्तित्व और यादें”

संजय गांधी की मौत और उनका दिल टूट जाना

1980 में छोटे भाई संजय गांधी की एक प्लेन दुर्घटना में मौत हुई। उस दिन राजीव गांधी की दुनिया पूरी तरह बदल गई।

एक करीबी ने बताया: “राजीव अपने छोटे भाई की बॉडी को देखकर घंटों कुछ नहीं बोले — बस जमीन पर बैठकर तस्वीरें देखते रहे।”

वो घटना उन्हें भीतर तक तोड़ गई — और उसी टूटे दिल के साथ उन्होंने राजनीति में पहला कदम रखा।

राजीव गांधी चाहे प्रधानमंत्री रहे हों या पायलट — वे हर दिन अपने बच्चों के साथ समय बिताने की कोशिश करते थे।

  • वो प्रियंका गांधी को स्कूल छोड़ने खुद जाते थे।

  • राहुल गांधी ने एक बार कहा:

    “पापा चाहे जितने व्यस्त हों, रात को सोने से पहले हमें ज़रूर कहानी सुनाते थे।”


 कैमरे से प्रेम: फोटोग्राफी उनका असली शौक था

  • राजीव गांधी को फोटोग्राफी और विडियो रिकॉर्डिंग का जुनून था।

  • उन्होंने इंदिरा गांधी के बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय दौरों की फोटोज खुद लीं।

  • उनके पास हमेशा Leica और Nikon कैमरे रहते थे — और समय मिलने पर वे बच्चों की तस्वीरें खींचते।


 अंतिम क्षणों की मार्मिकता

राजीव गांधी की हत्या की रात (21 मई 1991), वो बेहद थके हुए थे — लेकिन तमिलनाडु की रैली को टालना नहीं चाहते थे

उन्होंने अपने बॉडीगार्ड से कहा:
“लोग मुझसे मिलने के लिए दूर-दूर से आए हैं, मैं कैसे ना जाऊं?”

और वही यात्रा उनकी आखिरी बन गई।

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